लघु व्यंग्य.. युग परिवर्तन !

 

लघु व्यंग्य

युग परिवर्तन !


(व्यंग्य-१)


एक दल तो दल।

दो चार हुए तो दलदल !

अब न तेरा दल न मेरा दल !!

दलदल दलदल ……बस दलदल

हमारा भी दलदल

तुम्हारा भी दलदल !!!!


(व्यंग्य-२)


बेटियाँ बचाओ ?

लेकिन किससे….कहाँ कहाँ…कब कब ?

इसे हिदायत मान कर चलें या अभियान ?


(व्यंग्य-३)


मारीचि जब हिरण बना  

तब सीता का हरण करवाया

और आज कल मारीच मय काल

छल छद्म का फैला मायाजाल !!


(व्यंग्य-४)


देश में एक महापुरुष ऐसे भी हुए जिनको एक मत कम मिला तो त्याग दी कुर्सी दूध में पड़ी मक्खी की तरह..

  और एक ऐसे आ मिले जिन्हें थोड़ी सीट भी मिल जाएं फिर क्या पूरी की पूरी सरकार बनाकर मानें…

क्या यही है असली युग परिवर्तन ??


(व्यंग्य-५)


एक धवल वस्त्रधारी बोल रहा था इस बार फिर सरकार बन रही है। 

तभी कोई बोल पड़ा…

जनता की या उनकी ?

मंहगाई घूँघट में शर्म से लाल है !

युवा रोजगार से पूरा मालामाल है !

विपक्षियों पर जाँच की तलवार है !

लेकिन फिर भी बड़ा दिल बड़का भैया का..

जो दलबदल लें उनसे अथाह प्यार है।

फिर काहे की जाँच काहे की तलवार है !!

अँगना में बहार है ??


(व्यंग्य-६)


नई भर्ती योजना की तारीफ एक पेंशनर बड़े ही शान से कर रहा था।

तभी एक लड़के ने सवाल किया अगर बड़े अंकल अब पेंशन आधी करने का बिल ले आएं तब दिव्य ज्ञान दोगे या नहीं !

तब हम आपसे मिलेंगे पता बता दो अंकल !!

पेंशनर भागता दिखा ?


(व्यंग्य-७)


सुना है उधर वाले खूब माल बना रहे हैं।

अर्थात आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।

लेकिन सवाल ये है अगर वे आकंठ भ्रष्ट हैं ! तब भी सत्तारूढ़ दल इन्हें कौनसे वैदिक अनुष्ठान के द्वारा दुग्धसम जलसम पवित्र कर स्वीकार कर लेता है।

क्या वे तब भ्रष्ट थे लेकिन अब नहीं ? 

ऐसा कैसे हुआ 

ये फॉर्मूला भी युग परिवर्तन का साक्षात उदाहरण है।


(व्यंग्य-८)


एक आदमी आया और बोला

भैया जी मेरी हालत दूध को मुँह में भरने जैसी हो गयी है।

गलती ये रही दूध गर्म है या ठंडा पहले देखा नहीं ! 

हमने कहा "मतलब" अर्थात आशय

तब वह फट पड़ा बोला गलती है हमारी हमने उसे वोट भी दिया और नोट भी ! लेकिन हमारा गला जलता ही जा रहा है। 

अब उसे उगले या निगलें 

कुछ समझ नहीं आ रहा।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१५.०३.२०२३ ११.२५पूर्वाह्न(२८३)









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