अशआर-उड़ने का हौसला !

 

✍️अशआर✍️

उड़ने का हौसला !


जुबान है तो लफ्ज़ भी रख आदमी

बेजुबानों की कद्र,ज्यादा नहीं होती !


पंखों की अहमियत,उस वक़्त कुछ नहीं

उड़ने का हौसला,ग़र साथ में ना हो


दाग़ चेहरे पर लगे हैं,आपके भी दोस्त

नज़र उनके दाग़ पर,ठहरी सी क्यों रही ?


देखोगे गौर से,ग़र अपना अक़्स भी

सब दाग़ नज़र आएंगे,यक़ीनन ये मानिए


एक बार देख लो,ख़ुद दाग़ आप भी

कीचड़ उछालना,फिर ठीक मानिए


अपने भी दाग़ देखो,कुछ रंग ढंग देखो

तब इनकी ओर देखो,तब उनकी ओर देखो


झूठों के झुंड में,घुटती रही सदा

बानी में दाग़ देखो,पानी में दाग़ देखो


दर्द-ऐ -दिल महसूस करो ग़र जिंदा हो

साँस चलना सुबूत नहीं,तुम जिंदा हो


अश्क़ करते हैं,दर्द-ऐ -दिल बयान

गले लगा एहसास दिला,तुम जिंदा हो


इंसान की उम्र,वैसे तो कुछ नहीं रक्खी

मगर गुमान इतना,कि हमेशा के लिए रक्खी

 

दिमाग वाले घुट घुट के,जीते हैं ताउम्र

कसूर इतना सा,रिश्तों को समझा ही नहीं


ताउम्र दौलत के लिए,भागता देखा गया

रुखसती यहाँ से हुई,हाथ खाली ही गया


एक बार गुनाह कबूल करो,अपने भी दोस्तो

बस उन्हें गुनाहों से सना कहना,जायज़ नहीं


मुफ्त देकर मुफ्तखोरी,क्यों बढ़ाते हो ज़नाब

कामचोरी को बढ़ावा,दे रहे क्यों आप भी ?


दे सको तो दीजिए,आजाद पंछी सा मुकाँ

पींजड़ों में कैद करना,बात कुछ जँचती नहीं


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२५.०३.२०२३ ०८.१८ पूर्वाह्न (२८६)





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