गजल🌷🌷रंग🌷🌷

 

गज़ल

🌷🌷रंग🌷🌷

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रंगों का खेल है,सब खेल रंग का

जीवन के रंग का,रंगों के ढंग का


रंग लाल पीले,गेरुआ भूरे हरे भरे

आओ तलाश लें,अपने से रंग का

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रंगों के जाल में,फँसता ही जा रहा

लेकिन नहीं मिला,सच रंग संग का


गिरगिट सा रंग भी,उम्दा क़माल है

बदलेगा कब कहाँ,वह रंग अंग का

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इंसान के भी रंग,मौसम से मानिए

बदलेगा वह जरूर,ख़ुद रंग ढंग का


होली के रंग भी,रंगीन अब कहाँ

बिगड़ा हुआ सा है,पासंग रंग का

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सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

जनकवि

०४.०३.२०२३ ०८.१९ पूर्वाह्न (२७८)





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