आओ होली खेलें
गुजिया कहती मीठापन हो
कहे गुलाल सनेह।।
रंग लालसा लिए कह रहा
उन्नति हो प्रति गेह।।
हो उल्लास सकल वसुधा पै
आओ होली खेलें।।
रंग चढ़े हों बैर भाव के
उन्हें करें बेरंग।।
आओ बढ़ के गले लगा लें
हो जाएं तर रंग।।
खो जाएं हम रंग संग में
पियें प्रेम की भंग।।
भूल चलें हम द्वेष दंभ सब
आओ होली खेलें।।
रंगों के उत्सव संग रंग कर
नवल प्रेम रस लेलें।।
गले लगें हम मित्र वन्धु सब
आओ होली खेलें।।
बैर द्वेष की आहुति देके
चले चलें हम साथ।।
रंग भरें सबके हम उर में
सहज सरलता देलें।।
रंग गुलाल उड़ें अंबर में
आओ होली खेलें।।
चेहरे पर चेहरे मत रखना
मत रहना बदरंग।।
अगर भेद हो मन के अंदर
जबरन बोझ न झेलें।।
हो मन में निश्छलता प्यारे
आओ होली खेलें।।
कोरा कोरा मन मत रखना
भर कर रखना प्यार।।
जीवन को मर्यादित रखना
बढ़े सरल व्यवहार।।
होली का संदेश समझ कर
आओ होली खेलें।।
आओ होली खेलें…
आओ होली खेलें…
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०५.०३.२०२३ ०८.३८पूर्वाह्न(२७९)