कविता-नहीं नहीं उनकी जय बोल !!

 

✍️कविता✍️

नहीं नहीं

उनकी जय बोल !!


नहीं नहीं उनकी जयबोल !!

माँ जिनके घर में भूखी हो,

मिले जिसे रोटी सूखी हो।।

उनकी सब करतूतें खोल,

नहीं नहीं उनकी जय बोल।।


दौलत का अंबार लगाया,

नियम नीति ईमान भगाया।।

संतानों को दुग्ध पिलाया,

पापकर्म का मिश्रित घोल।।

नहीं नहीं उनकी जय बोल !!


बूढ़ी माँ बूढे बाबूजी बाहर रोते,

घर के अंदर मस्त दंपती सोते।।

बड़े साहब तो बड़े आदमी ठहरे,

खोल खोल अंतर् पट खोल।।

नहीं नहीं उनकी जय बोल !!


बड़े बड़े सामाजिक कर्ता,

बड़े बड़े नकली दुख हर्ता।।

घुट घुट के माँ जीती घर में,

खोल खोल सब इनकी पोल।।

नहीं नहीं उनकी जय बोल !!


गाड़ी बंगला नौकर माली,

रास रंग हर रोज दिवाली।।

मदिरा का भण्डार सजाते, 

दौलत शाही कोरा ढ़ोल।।

नहीं नहीं उनकी जय बोल !!


सुबह दावतें रात दावतें,

नित नूतन रस रंग दावतें।।

करते मस्ती रहते व्यस्त,

उम्र ढ़ली फिर उतरा खोल।।

नहीं नहीं उनकी जय बोल !!


अगर दरबदर नहीं होना हो,

घुट घुट पल पल नहीं रोना हो।।

कर संचय ईमान धर्म धन,

नहीं फटे फिर आगे ढ़ोल।।

नहीं नहीं उनकी जय बोल !!


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०१.०४.२०२३ ०९.०४पूर्वाह्न(२८९)







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