कविता-रिश्तों में सिलवट का पहरा !!

 

✍️कविता✍️

रिश्तों में सिलवट का पहरा !!


बदल गए कुछ "कुछ"बदलेगें,

नियम नीति सिद्धांत।।

रिश्तों में नव नित परिवर्तन,

क्षुब्ध मनुज है क्लान्त।।


टूटन घुटन मानसिक दुविधा,

होता रहता समर घना।।

सहमा हुआ विदित होता नर,

मन से निज से खिन्न मना।।


रिश्तों में सिलवट का पहरा,

रक्त रक्त पर भारी।।

देहरी अंदर छिड़ा महा रण,

जंग स्वयं से जारी।।


रिश्तों में घटती गर्माहट,

वार्ता कोसों दूर।।

हम होकर मदमत्त डोलते,

घने नशे में चूर।।


यही ढंग ग़र रहा सतत तो,

बचे न प्यार दुलार।।

शोहरत पाकर हार न जाना,

मानव सब कुछ झार।। 


संवादहीनता की खाई में,

समा रहे हम आज।।

समझो सोचो करो वार्ता,

बदलो ढंग मिजाज।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१०.०४.२०२३ ०९.४५अपराह्न(२९१)


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