कविता-बाबू जी की याद

     
✍️कविता✍️

बाबू जी की याद

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बाबू जी की कही बात वह याद आगयी,

बाबू जी फिर आज आपकी याद आगयी।

चूम गये चुपके सिरहाने आ कर माथा,

बाबू जी की विद्या प्रणय की याद आ गयी।

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छत के ऊपर रखा वह सोटा याद आगया,

पीतल का वह भारी लोटा याद आगया।

याद आ गया गले लगाकर डाँट खिलाना,

खुरचन रबड़ी का वह दोना याद आगया।

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याद आगया डाँट खिलाकर पास बुलाना,

याद आगया पास बुलाकर मंत्र सिखाना।

याद आगयी ताख़ी पर रक्खी वह माला,

याद आगया जीवन का दर्शन सिखलाना।

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याद आगयी आँगन की वह सौंधी माटी,

याद आगयी सीधी सच्ची बोली खाँटी।

याद आगयी साँझ ढले की मंत्र साधना,

याद आगयी दिव्य शक्ति संचित परिपाटी।

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वह मेवा का पाग याद अनुराग आ गया,

वह फागुन का फाग सुनाना याद आ गया।

याद आगयी द्वार पर रक्खी मच्छरदानी,

बाबूजी का आभा मंडल याद आ गया।

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याद आ गया डेढ़ रुपये का खुला निमंत्रण,

कामयाब हो पढो सफलता का आमंत्रण।

बाबूजी वह सीख आपकी याद आ गयी,

पिता गुरू का दिव्य मेल अद्वितीय संरक्षण।

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सदा हमारा रहा गर्व युत उन्नत माथा,

साथ खड़ा था छत्र पुत्र का भाग्य विधाता।

आप सदा मेधा और बल के तेज पुंज थे,

शब्द नहीं कह सकें आपकी अनुपम गाथा।

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बाबू जी की डाँट और गहरा अनुशासन,

सत्यनिष्ठ वाणी गम्भीर अद्भुत सम्भाषण।

सदा सत्य का मार्ग सिखाते थे बाबू जी,

राजनीति का ज्ञान और सत्ता स्वशासन।

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सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०३.०१.२०२२ १२.३१ मध्यरात्रि(२९९)

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प्रकाशन तिथि २९.०४.२०२३




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