अशआर
दिल अकेला रहा
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ढूढ़ने पर आजकल इंसा नहीं मिलते
कुछ मिल भी जाएं तो जिंदा नही मिलते
चेहरे लगे हुए हैं बस आदमी जैसे
मिलकर नहीं खुलते खुलकर नहीं मिलते
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अपनों से झूठ बोले ग़ैरों से झूठ बोले
मंदिर में झूठ बोले मस्जिद में झूठ बोले
वे आदमी न थे बस आदमी से थे
वे रब से झूठ बोले वे सबसे झूठ बोले
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ईमान ठोकरें खाता मिला अकसर
बेईमान शोहरतें पाता मिला अकसर
किताबों में लिखा था ईमान बड़ी चीज है
घुटनों के बल आजकल गिरता मिला अकसर
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दौर है आजकल का खुलकर के झूठ बोलो
ना पैर डगमगाएं जब खुलके झूठ बोलो
है ख़ासियत बड़ी मौजूदा वक़्त की
हँसकर के झूठ बोलो मिलकर के झूठ बोलो
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झूठों का बोलबाला बढ़ता चला गया
वह रोज़ रोज़ सीढियाँ चढ़ता चला गया
जोड़ा ज़मीर बेंचकर लेकिन बचा नहीं
एक बार जब लुटा लुटता चला गया
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ना तुम पास आए न वे पास आए
वक़्त गुज़रा तब क्या पास आए
शोहरत बखूब पाए दौलत भी खूब पाए
क्या फ़ायदा रहा रिश्तों को हार पाए
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बताना तो चाहा दर्द-ए-दिल
तलाशा मगर सुनने वाला न मिला
भीड़ थी फिर भी अकेला रहा
मलाल है रंज है दिल अकेला रहा
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आजकल रिश्ते बिखरते जाते हैं
रोज रोज धीरे धीरे मरते चले जाते हैं
सबक पढ़ा था सदाक़त बड़ीं चीज है
मगर सदाक़त की आज कीमत क्या है
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होशियार रहो उनसे मौजूदा वक़्त में
तेरे सामने तेरा उनके सामने उनका बने
चमक शोहरत देख कर जो बात करे
क्या पता वह कब दग़ा सौग़ात करे
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सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०३.०५.२०२३ ०९.०१ पूर्वाह्न(३०१)