कविता-परिवार वर्सेस फैमिली!

 

✍️कविता✍️

परिवार वर्सेस फैमिली !


परिवार अब नहीं मिलते ! 

दिया लेके,ढ़ूढ़ने से भी नहीं,पहले की भाँति

पहले परिवार में माँ होती थी माँ !

पिता होते थे पिता,परिवार के मुखिया सर्वेसर्वा !

और चाचा,ताऊ,सगे,चचेरे भाई बहिन.. 


जी हाँ और होता था एक संयुक्त आँगन !

और उस आँगन में बिछी चारपाइयाँ।

और उन चारपाइयों पर सबके बिछौने,

शाम को सब खूब बतियाते और सो जाते।

परिवार होना बड़ी बात है फैमिली होना नहीं !


और माँ के साथ साये सी बड़ी भावी और बहुएँ,

हाथ बटाती हुईं खूब बतियाती जातीं।

भावी ननद आपस में चिढ़ाती दिन भर दिल भर,

और छेड़ छेड़कर खूब मुस्कराती लजातीं। 

देवर भावी की नोंक झोंक प्रतिदिन देखी जाती।


बड़ा अर्थ बड़ा महत्व रखता था परिवार,

कोई बीमार हो जाता था तब सब घेर लेते थे।

चारपाई के चारो ओर आ आ बैठ बैठ,

शुरू होती परहेज के साथ दवाई और देखभाल।

ये सब परिवार कर सकता है फैमिली नहीं !


परिवार में सुरक्षा थी सरलता थी अपनापन था,

किसी को नहीं खलती थी तंगहाली।

मिलकर सब बोझ उठाते समस्याओं का एकसाथ,

एक चौका एक आँगन और सब खुश।

ये खुशहाली परिवार में होती थी फैमिली में नहीं !


कम थे संसाधन लेकिन खुशहाल भरपूर,

तनाव से कोसों दूर सब कुछ ठीकठाक सुखद।

कोई अकेला नहीं समझता था खुद को,

पिता थे माँ थी भाई थे बहिन थी हम थे हम।

हम हैं परिवार सिखाता था फैमिली नहीं !


अब परिवार न्यारा होके फैमिली हो गया,

मोडर्निटी ने एडवांस्ड बना दिया परहेप्स !

परिवार वर्सेस फैमिली की कंपेयर क्या ?

वाइफ हसबेंड एकाध बच्चा और एक कुत्ता झबरा,

साथ सोने को घूमने को गाड़ी में गोदी में !


कहीं कहीं शायद एकाध बचा हो अभी परिवार !

ये सत्य है अब पूरा परिवार नहीं बचा होगा,

नहीं बैठते होगें साथ साथ नहीं खाते होगें साथ।

सासु झेंपती होगी बहू के सामने और ससुर भी ! 

परिवार संस्कार सिखाता था फैमिली नहीं !


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१५.०५.२०२३ १०.११अपराह्न (३०७)

(विश्व परिवार दिवस पर खास रचना)



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