अशआर
नज़दीकियां नहीं !!
नज़दीकियां नहीं,अब उनसे दोस्तो
जिनकी ज़बाँ नहीं,ना बात दोस्तो
जीते हैं शान से,नकाबों के साथ जो
किनारा ही ठीक है,अब उनसे दोस्तो
ना ज्यादा शराफ़त,न ज्यादा अदब
जो जैसे बात समझे,वैसे ही बात कर
ख़ालिस शरीफ़पन,शराफ़त का शौक़
अच्छी है बात लेकिन,थोड़ा संभाल कर
खाकी में कुछ छिपे,खादी में कुछ छिपे
इनको निकालिए,आ करके कुछ छिपे
धोखाधड़ी और झूठ का,कुनबा बड़ा बढ़ा
आकर के आ खड़ा,सीने पे आ चढ़ा
जितने शरीफ़ थे,ख़ामोश बस रहे
गुंडों के हौसले,इससे ही बढ़ गए
थाने में अर्जियां और अर्जियों में दाम
होता नहीं है दोस्तो,नोटों बग़ैर काम
देखोगे गौर से तब आएगा नज़र
रखना ज़रा नज़र,रहना न बेख़बर
सच में कहूँ या ना कहूँ,अंदर की एक बात
है उनको भी पता,अंदर की सिगरी बात
उनके लिए दुआ भी नहीं,बददुआ भी नहीं
जो आदमी से हैं,पर आदमी नहीं
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२५.०५.२०२३ ०९.२१ पूर्वाह्न (३०९)