जूते "जी हाँ" जूते
जूते "जी हाँ" जूते
जूते जो खाल से बने होते हैं
कुछ बिना खाल के बने होते हैं
त्याग साहस के पर्याय होते हैं जूते
जूतों को चाहिए होते हैं पैर
और पैरों को चाहिए होते हैं जूते
जब दोनों मिलकर होते हैं एक
तब ही होती हैं पार मंजिलें अनेक
उपानह जूते अथवा चर्मपादुकाएं
जूतों के अपने कोई पैर नहीं होते
लेकिन वे करते है सतत अनेकों यात्राएं
लंबी लंबी बहुत लंबी लंबी अथक यात्राएं
इसके मूल में समाहित समर्पण आपसी लगाव
जब गुस्सा होते हैं जूते तब काट लेते हैं पांव
गर्मी बरसात ठंड झेलने के उपरांत समभाव
एक दूसरे के प्रति समर्पण समर्पित स्वभाव
जूते की किस्मत और दुर्भाग्य दोनों होते हैं
लोग झुकते हैं छूते हैं जूते पैरों की जगह
और जब घिस जाते हैं जूते तब क्या ?
मनुष्य जीव और जूते एक सी किस्मत !!
चमड़े के जूते में लगी खाल होती है,
बेजुबान जानवरों की,बेजुबान किसान के
किसान और हम किसके? धरती के।
और धरती जल हवा सांस सब भगवान के।
फर्क है जिंदा खाल और मरी खाल में
जिंदा खाल पहनती है मरी खाल ठाठ से
और मरी खाल चुपचाप स्वीकारती है
ठोकरें अपमान आदर घुटन प्रारब्ध !
खाल बेजुबानों की ही क्यों उपयोगार्थ
प्रश्न खड़ा है मुंह वाये मेरी ओर तेरी ओर
जूते खाल के,खाल बेजुबान पशुओं की !
और ये बेजुबान भेंट बने किस किसके?
बेजुबान सिर्फ जूतों के लिए ही नहीं कटे
अपितु स्वाद निशाचरी भूख के लिए भी!
आदमी की खाल किसी काम की नहीं
लेकिन बेजुबान की खाल………!!
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२८.०५.२०२३ ०६.४५पूर्वाह्न (३१०)