अशआर
चिराग़ जलता है !!
ख़ामोश हूँ,मगर इतना भी नहीं
बोलना "सच बोलना" ही भूल जाऊँ
मेरी खामोशियाँ,सारी मुझे मुबारक
यूँहीं बोलकर,लफ्ज़ जाया क्यों करूँ
मशविरा दो "मगर" बिन माँगे नहीं
बेशकीमत चीजें लुटाई नहीं जातीं
चुप रहना "मगर" भूलना मत बोलना
बेजुबान कहीं,आदमी नही होते
ख़ामोश लोग और ख़ामोश शहर
यह निशानी है,गुलाम होने की
तुम मुझे चाहो या नकार दो
चुप्पी भी बोलेगी,इसी अंदाज़ में
ख़ामोश हूँ,मगर बदहवास नहीं
अभी आदमी हूँ,जिंदा लाश नहीं
बड़ा नसीब नहीं,ना बदनसीब हूँ
ख़ामोश हूँ खुश हूँ खुशनसीब हूँ
चिराग़ जलता है,उजाले के लिए
कुर्बान होता रहा,वह सदा से दोस्तो
पैसा ज़रूरी है,बहुत ज़रूरी है
मगर इतना नहीं,कि ख़ुदा मान बैठो
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०६.०५.२०२३ ०५.००अपराह्न(३०३)