✍️ग़ज़ल✍️
आदमी वो आदमी !
आखिरी वक़्त तक,चलता रहे वो आदमी
दर्द पीकर भी रहे खुश,आदमी वो आदमी
छोटी छोटी कड़वी बातें,तोहमतें धोखे दग़ा
ठोकरों से रौंद डाले,आदमी वो आदमी
मुकाँ पाने की होड़ में,खोते जाते रोज़ हम
कम भी पाके खुश रहे,आदमी वो आदमी
इधर देखा उधर देखा,दिल मेरे देखो इधर
कभी जो अंदर भी देखे,आदमी वो आदमी
मैं सही हूँ वह गलत,बोलते पाए गए वे
सही गलत जो जान पाए,आदमी वो आदमी
लहू अपना रंग,बदले जा रहा है आजकल
लहू का रंग जो बचाए,आदमी वो आदमी
आबरू चौराहे पर,लुटती रही वह भाग आया
कह सकेगा कापुरुष,मैं आदमी हूँ आदमी
ओहदे पाकर बहुत से,लूटते मिल जाएंगे
देखकर जो उठ खड़ा हो,आदमी वो आदमी
ज़िंदगी से क्या शिकायत क्या ग़िला
मस्त होकर जीता जाए,आदमी वो आदमी
इश्क़ ख़ुद से और उनसे खूब जो करता रहे
इश्क़ पर जो हो फ़िदा,आदमी वो आदमी
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०७.०६.२०२३ ०८.१५पूर्वाह्न(३१३)