कविता-हार मानते नहीं वीर नर !

 

कविता

हार मानते नहीं वीर नर !


दिनकर की तपती ज्वाला हो,

काल खड़ा लेकर भाला हो।

ठिठक न जाना दुबक न जाना,

बेशक ज्वाला से पाला हो।


हार मानते नहीं वीर नर!

चलते पथ नित नव डग डग भर।

तेरे पद मद तोड़ें पथ का,

ऐसा करना यत्न धीर नर।


भय से कंपित मत रहना नर,

नित नित शंकित मत रहना नर।

जीवन का पथ कंटक पथ सम,

किंचित चिंतित मत रहना नर।


जितना हो संघर्ष विराट,

हो उन्नत उत्कृष्ट ललाट।

हो मत जाना तनिक हताश,

भेद भेद तू लक्ष्य धैर्य धर!


कोई नहीं खड़ा संग मान,

देख देख स्वयं नेत्र सुजान।

भय से लड़ स्वयं से लड़, 

चल चल बढ़ बढ़ हठ बल कर।


रुकना मत पथ छोड़ न देना,

भय वश प्रण नर तोड़ न देना।

तपना होगा जलना होगा लड़ना होगा,

चलना होगा बढ़ना होगा बढ़ना होगा। 


जो जाने समझे स्वयं स्वयं को,

मेधा संयम शील विनय निज लय को।

उनका मार्ग प्रशस्त सुलभ करते रवि,

त्याग त्याग कोरे भृम भय संशय को।


चलो उठो डग भरो करो कुछ,

मानव हित जग हित स्वयं के हित।

याद वही रहते हैं जग में वीर महान,

जिनके छप जाते उर उर में दिव्य निशान।


रुकने का प्रयत्न तुच्छ नर करते,

अंधड़ ताप विषम स्थितियों को लखि डरते।

लेकिन जो होते लड़ने को सज्ज सदैव,

उनके साथ खड़े हो जाते नर नारायण दैव।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०९.०६.२०२३ ०८.००पूर्वाह्न(३१४)



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