बदला हुआ लगा !
हो करके जब उदास,मैं बैठ यूँ गया
यादों के साथ साथ,यादों में खो गया
महसूस हो गयी,उस दौर की हवा
रिश्तों का महकना,रिश्तों का फ़लसफ़ा
रिश्तों में ज़ोर था,वह वक़्त और था
अब बात वह कहाँ,वह दौर और था
इस दौर में कहाँ,पहले सी मस्तियाँ
डूबा हुआ सा आदमी,डूबी सी कश्तियाँ
नकली सी मोहब्बतें,नकली से रंग ढंग
बदला ही जा रहा है,नित रोज़ रोज़ रंग
हम घूमते रहे,कोरे बने ठने
मरते चले गए,रिश्ते सगे बने
कब कौन साथ दे,कब कौन दे दग़ा
बदला हुआ ज़माना,बदला हुआ लगा
किस पर यकीं करें,किस पर यकीं नहीं
रिश्ते धुँआ धुँआ,होते गए धुँआ
रिश्तों की उम्र भी,अब कितनी मान लें
दुश्मन भी हम बने,अपने भी हम बने
पहचानते नहीं,अपने हैं जो सगे
बस आईना मिला,पहचानता मिला
रिश्तों की ख़ासियत,रिश्तों की हैसियत
इनसे ही दोस्तो,बनती है शख़्सियत
कोशिश जरूर हो,रिश्ते बचे रहें
इस दौर में रहें,हर दौर में रहें
देखो ज़रा उधर,देखो ज़रा इधर
घटती ही जा रही,रिश्तों की भी उमर
धोखा फ़रेब झूठ,और इश्क़ बेवफ़ा
अपनों से बेरूखी,अपनों से ही ख़फ़ा
अपना लहू दग़ा,तोहफ़े में दे रहा
अब कौन है बचा,क्या क्या रहा बचा
हैं शेष आज भी,तादाद में बहुत
रिश्तों की नब्ज़ को,थामे हुए बहुत
होकर उदास भी,दिल खोलकर मिले
ऐसे बहुत मिले,खुलकर बहुत मिले
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१२.०६.२०२३ ०९.०१पूर्वाह्न(३१५)