✍️दिल में दिल रहे.✍️
कभी इधर,कभी उधर
नुकसान देते हैं,यही लोग अक़्सर
पूरे रहो खुलके रहो "तो" रहो
आधे अधूरे मन से,कोई रहना नहीं होता
न नक़ाब रक्खो,न दुराव रक्खो
दिल में दिल रहे,वफ़ा बेहिसाब रक्खो
दो चेहरे दो गले और दो रंग
बहुत कुछ दे गए,दो रंग में रहने वाले
सिखाया भी दुखाया भी बहुत
मामूली तोहफ़ा नहीं,आपसे यारो मिला
हम चाहते रहे,जां जिगर की तरह
उन्हें हम दिखे बस मुसाफ़िर की तरह
लवों पर हँसी दिल में मिठास हो तो ठीक
बहुत चुभते हैं,जिन्हें नकाबों से इश्क़ हो
हम यूँ हीं दिल ए हाल बयाँ नहीं करते
दिमाग वालों से,दिल की बात नहीं करते
जिन्हें शौक हो फ़रेबी शक़्ल रखने का
बात तो छोड़िए मुलाकात हम नहीं करते
टूट जाते हैं अक़्सर,फ़रेब से बने रिश्ते
जिन्हें रिश्तों की क़द्र नहीं,बचते नहीं रिश्ते
खुली किताब सी जिनकी मिली जिंदगी
यक़ीनन हम उन्हें दिल से जुदा नहीं करते
नशा दौलत का शोहरत का जिन्हें हो
क्या कहें क्या नहीं,हम बात नहीं करते
आदमी का गिरना,कोई नई बात नहीं
गड्ढे में गिरे नाली में गिरे या नज़र से गिरे
बहुत कम बहुत कम,साँसों का सिलसिला
मगर हम मानते भी नहीं जानते भी नहीं
रिश्तों के महीन धागे,सिलाई और तुरपन
बस उधड़ती जा रही है,आजकल के दौर में
वह चाह वह अपनापन और वह नजदीकियां
बस सिमटती जा रहीं आजकल के दौर में
रिश्तों में गिरावट !!
सच मानिए टूटने की आहट
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१५.०६.२०२३ ०७.०८पूर्वाह्न (३१६)