✍️कविता✍️
रुक मत जाना
हो जिनके मन में दृढ़ निश्चय,
लक्ष्य वे निश्चित पाते हैं।।
किंचित स्वयं से हार न मानें,
विजय सुनिश्चित पाते हैं।।
मिलते नहीं सहज यूँ ही मग,
पुष्प सजाए लिए खड़े।।
कदम चूमते कंटक आ लगि,
आकर मग में बड़े बड़े।।
सहज सरलता से कब मिलते,
सखे विजय के हार कहीं।।
वीर प्रवीण विवेकी महा नर,
रुकते किंचित मार्ग नहीं।।
मिले भले बहु भाँति यातना,
होते ना विचलित मग में।।
सिद्धि प्रसिद्धि यही नर पाते,
जीवित फिर रहते जग में।।
जीवन पथ सामान्य न समझो,
संघर्षों का अद्भुत मेल।।
उन्नति अवनति विजय पराजय,
भोर साँझ सा मानो खेल।।
हिम्मत रखना सदा मनुज तब,
जब आए संघर्ष बड़ा।।
डर मत जाना रुक मत जाना,
रहना तब निर्भीक खड़ा।।
साहस के बल पर ही संभव,
युद्ध फ़तह और रण कौशल।।
साहस के बल पर ही संभव,
जीवन पथ अदभुत कौशल।।
साहस बुद्धि विवेक ज्ञान से,
पा जाता नर विजय बड़ी।।
सत्य शील निष्ठा निश्छलता,
परख परखती घड़ी घड़ी।।
साहस धैर्य सरलता संयम,
मंत्र विशेष हैं जीवन के।।
गिरना उठना लड़ना बढ़ना,
चित्र विचित्र रहे मन के।।
सखे मनुज कुछ बात सुनो तो,
डरे डरे मत रह जाना।।
अपना स्वयं पुरुषार्थ परखना,
मरे मरे मत रह जाना।।
लिखे पढ़े इतिहास तुम्हें भी,
कुछ अपना अध्याय लिखो।।
जीवन का संघर्ष और जय,
मानवता और न्याय लिखो।।
किंचित भी विश्राम न करना,
जब तक लक्ष्य फ़तह ना हो।।
चलना तुम निर्भीक सहज हो,
जब तक जग में जय ना हो।।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१९.०६.२०२३ ०५.२५अपराह्न (३१७)