अशआर
यूँ हीं कभी कभी
दौलत के साथ कोई शोहरत के साथ कोई
इन सबके बावजूद,टूटा हुआ सा कोई
देखा जब माज़रा,समझा जब माज़रा
अपने ही अक्स से,रूठा हुआ सा कोई
रिश्तों में दूरियाँ कुछ तो कमी सी है
आंखों में देखिए कुछ तो नमी सी है
हर एक आदमी कुछ तो निराश है
खाली सा कुछ तो है प्यासी जमीं सी है
शाखों को ख़ौफ़ है पंछी न दें दग़ा
साये के साथ साथ सहमा हुआ लगा
यूँ हीं कभी कभी दिल उदास हुआ
यादों के पन्ने पलटे दिल उदास हुआ
देखा जब गौर से,इस दौर का चलन
आँखें थीं डबडबाई दिल उदास हुआ
उम्र भर कमाया,अपनों का घर बसाया
अपनों ने जब रुलाया,दिल उदास हुआ
ऐसे ही सोचते बस रात कट गयी
ख़्वाबों में कट गई यादों में कट गयी
रिश्तों को भूलना आसान कब रहा
जब सबकी याद आयी दिल उदास हुआ
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२२.०६.२०२३ १०.३८अपराह्न (३१९)