कविता-जनता बोल बोल बोल !

 

🙏कविता🙏

जनता बोल बोल बोल !


खोलो खोलो निर्भय होकर

करतूतों की पोल,

कितना कोरा कितना पोला

देखो देखो ढोल।।

जागो जागो बोलो बोलो 

खुलकर अपने बोल,

जनता जाग जाग जाग ! 

जनता बोल बोल बोल !


रक्षक जब भक्षक बन जाए,

लूट खसोट चढ़ी सिर आए।।

राजा गाए गीत मल्हारें,

होकर फिर तू निर्भय बोल।।

जनता जाग जाग जाग !

जनता बोल बोल बोल !


जन सेवक सेवा से भागे,

रिश्वतखोर लिफाफे माँगे।।

भृष्टाचार लूट का दानव,

करता जाए भारी झोल।।

जनता जाग जाग जाग !

जनता बोल बोल बोल !


नौकर आँख तरेरे आए,

नीति नियम सिद्धांत भुलाए।।

सीना तान रौंदता जाए,

खोल खोल खोल आँखें खोल।।

जनता जाग जाग जाग !

जनता बोल बोल बोल !


देख हकीकत समझ हकीकत,

सुधरी नीयत या बिगरी नीयत।।

जनता की क्या हुई फजीहत,

किसने पहना नकली खोल।।

जनता जाग जाग जाग !

जनता बोल बोल बोल !


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०३.०७.२०२३ ०७.४५पूर्वाह्म (३२३)






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