दोहे-अँखियाँ मारग जोहतीं...

 

🌷दोहे🌷

✍️अँखियाँ मारग जोहती✍️


सावन कौ महीना लगौ,हरे भरे भए पात।

मंद बयार सुहावनी,हर्षित हिय अरु गात।१।


सखियां मंगल गावती,बुंदियाँ करत किलोर।

पिया हिया धरि कामिनी,लेवै जिया हिलोर।२।


कंत मिलन की आस में,गोरी करि श्रृंगार।

निशि वासिर मग जोहती,आवेंगे भरतार।३।


आवेंगे मोरे सखी,जा सावन चित चोर।

अँखियाँ मारग जोहती,साँझ सकारें भोर।४।


अँखियाँ रतियाँ जागतीं,गए बहुत दिन बीत।

उठत हूक हिय में सखी,जोगन सी भई प्रीत।५।

 

करिहौं सब जिय की सखी,पिय सूँ सगरी बात।

उठत हिलोर उमंग भरि,साँझ सवेरे रात।६।


बहुत दिनन पाछें सखी,आवेंगे मम कंत।

विरहन सी मग जोहती,नहिं विरहा कौ अंत।७।


आवत अँखियाँ देखिहैं,जब अपने भरतार।

तब सुनि पिय के संग में,करिहौं कछु तकरार।८।


बहुत सतायौ बैरिया,ना सुधि मोरी लीन।

विरहन सी तड़पत रही,जैसे जल बिन मीन।९।


काले काले गगन में,घन गरजें घनघोर।

हिया हिलोरें मारतौ,नहिं आयौ चितचोर।१०।


भोर गयौ दुपहर गयौ,आवन भयौ दिनांत।

दरश पिया के नहिं भए,कब लौं बैठूं शांत।११।


निशारंभ दिनकर गए,आवत दिखे न नाथ।

बैरन बनकर आ गयी,सौतन सी फिर रात।१२।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

२०.०७.२०२३ ११.५५ पूर्वाह्न(३२६)






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