अशआर-यह सरज़मीं अपनी

 

🌷अशआर🌷

🙏यह सरज़मीं अपनी🙏


घर गाम भी अपने,आवाम भी अपनी

हिंदी जुबां अपनी,उर्दू जुबां अपनी।।


बेशक जुदा जुदा,भाषा और बोलियाँ

यह सरज़मीं अपनी,आबोहवा अपनी।।


इस ओर भी उस ओर भी,मदारी बहुत हैं

रहना ज़रा सजग,शिकारी बहुत हैं।।


कर लेंगे यूँ शिकार,आँखों के सामने

होगी नहीं ख़बर,दो-धारी बहुत हैं।।


हैवानियत लिए,हैवान भी यहाँ

इंसानियत लिए,इंसान भी यहाँ।।


चेहरे लगे हुए हैं,चेहरों के जाल हैं

भगवान भी यहाँ,शैतान भी यहाँ।।


हो जाएं वे ख़िलाफ़,अपने ही ग़र सगे

इंसानियत के वास्ते,इंसानियत जगे।।


मिट्टी हमारी है,मिट्टी तुम्हारी भी

रखना ख़याल यह,तोहमत नहीं लगे।।


किसके ख़िलाफ़ जाऊँ,किसको गले लगाऊँ

आपस में लड़ रहे,किसको सही बताऊँ।।


ये सब सगे अपने,अपने ही हमवतन

किसको गलत बताऊँ,किसको नहीं बताऊँ।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

२४.०७.२०२३ ११.५८पूर्वाह्न (३२८)









Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !