कविता-जीवन मार्ग नहीं बदलेगा

 

🌷🌷कविता🌷🌷

✍️✍️

जीवन मार्ग नहीं बदलेगा


यूँ हीं नहीं मिला करते हैं,

"हार" जीत के सुनो मनुज।

यूँ हीं नहीं खिला करते हैं,

बंजर भू पर पुष्प मनुज।


लड़ना होता है पग पग पर,

अंतर् द्वंद द्वंदों से। 

दर्द घृणा छल छद्म भूख से,

उठते अंतर्द्वंदों से।


मिलता है अपमान घनेरा,

इसी धरा पर अपनों से।

मिलते हैं उपहार त्रास के,

मित्र सहोदर स्वजनों से।


उपहारों के रूप अनेकों,

डाँट घृणा और मान।

मन को मत भय से भर लेना,

सुन ! जिंदा इनसान।


कंटक भी पुष्पों के संग में,

मान बहुत बिधि पाते।

कंटक पथ पर धीर वीर नर,

पग पग पग मुस्काते।


चलते जाते लड़ते जाते,

जीवन पथ के द्वंदों से।

धीरज संयम बुद्धि साथ ले,

कष्ट क्लेश छल छंदों से।


कितने अश्रु बहाओगे नर,

अधरों तक ले आओगे नर।

जीवन मार्ग नहीं बदलेगा,

यूँ कितने चल पाओगे नर।


छुपा ह्रदय में दबा ह्रदय में,

दर्द वेदना आह व्यथा।

चढ़ संघर्ष मार्ग के रथ पर,

लिख नूतन संघर्ष कथा।


निर्बल होकर शंकित होकर,

चल न सकोगे मार्ग मनुज।

आएंगे बहु भाँति यहाँ दुख,

रुक मत जाना धीर मनुज।


संयम धैर्य ज्ञान अरु साहस,

यही करेंगे पार मनुज।

षणयंत्रों के नाग पाश का,

नित नित ये संहार मनुज।


जिनकी जितनी प्रबल साधना,

दृढ़ विश्वास लिए रहती है।

निश्चित निश्चित यही धरा फिर,

उनकी यश गाथा कहती है।


इसीलिए रे ! मनुज सुनो तुम,

शंकित भिरमित मत रहना।

चलते रहना शांत धैर्य धरि,

किंचित चिंतित मत रहना।।


इसीलिए रे ! मनुज सुनो तुम,

शंकित भिरमित मत रहना।…..


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"(सूरजपुरी)

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

२९.०७.२०२३ ०९.२१पूर्वाह्न (३२९)





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