अशआर-हवा देखकर

 

अशआर

हवा देखकर


वे भी डरते हैं,और ये भी,सच मानो

इक आहट से,डरते हैं,सच मानो (१)


डरे रहते हैं,किसी और को,डराने वाले

अकेले नहीं चलते,अक़्सर डराने वाले (२)


झुक करके,क्या,पाओगे,तुम,यहाँ

यह दौर वह नहीं,जो दौर छोड़ आये हो (३)


जिसे ख़ुद पर,अगर,ख़ुद ही यकीं नहीं

उसके लिए,सच मानिए,कोई जमीं नहीं (४)


पता तो है,दरख़्त वही कटते हैं

जो बिल्कुल,सीधे खड़े दिखते हैं (५)


यूँ हीं मन्ज़िलें,मुकां नहीं मिलते

जैसे जमीं और आसमां,नहीं मिलते (६)


ऊँचे लोग,ऊँचे दरख़्त,और ऊँचें मकाँ

खौफ़जदा रहते हैं,अक़्सर हवा देखकर (७)


ज्यादा नर्म,ज्यादा शर्म,ज्यादा सदाक़त

बदलाव ज़रूरी है,यह दौर और है (८)


छीनना पड़ता है हक,आज ताकत से

मिला नहीं करती,हर चीज सदाक़त से (९)


ओहदे भी हैं,रुतबे भी हैं,बड़े साहब भी

मगर कमज़ोर बहुत हैं,अकेले नहीं मिलते (१०)


ये भी खौफ़जदा हैं,और वे भी बहुत

अंदर से खौफ़जदा हैं,शायद सभी बहुत (११)


सियासी लोग,सरकारी लोग,और वे

ईमान से,सच बोलना,बिल्कुल नहीं चाहते (१२)


झूठी शान,दिखावा,नक़ाबों से इश्क़

क्या खूब होते हैं,इसी अंदाज में,जीने वाले (१३)


मिलता है,तो,मिलने दो,ज़माना है

दग़ा वफ़ा इश्क़ सब कुछ ज़माना है (१४)


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

१६.०८.२०२३ १२.५० अपराह्न(३३५)

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