अशआर-वक़्त ही तो है

 

अशआर

वक़्त ही तो है


सिर्फ,अपनी बात

सुनो,उनकी भी बात


जिंदगी,क्या है 

बस,कुछ दर्द,कुछ दवा है


क्यों,इस क़दर रूठे हो

ख़ुद से ख़ुद ही,इस क़दर रूठे हो


वक़्त ख़िलाफ़ है,चलो माना

वक़्त ही तो है,इसे भी है चले जाना


अहसान किस पर क्यों किसलिए

जंग ख़ुद की है,ख़ुद ही फ़तह करनी है


जीतने की वज़ह,हम हैं,यक़ीनन

हारने की वज़ह हम ही हैं यक़ीनन


टूटना मत,वक़्त की अदाकारी देख

ये मिजाज़ बदलेगा,जंग जारी देख


डरे डरे छुपे छुपे रहोगे,तो खो जाओगे

खो गए ग़र दोस्तो,गुमशुदा हो जाओगे


समंदर किनारे लहर की आस होनी चाहिए

कुछ कर गुजरने की प्यास होनी चाहिये


बेशक़ अंधेरा खूब है,लेकिन सदा नहीं

उजाला होना चाहिए,यक़ीनन यहीं कहीं


सफ़र है जिंदगी,चलते चलो

ग़म ख़ुशी इश्क़ दग़ा वफ़ा मिलती रहेंगीं चलते चलो


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक 

१९.०८.२०२३ ०७.१५पूर्वाह्न (३३७)

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