कविता-बादल आए घुमड़ घुमड़

 कविता

बादल आए घुमड़ घुमड़


बादल आए घुमड़ घुमड़,

काले बादल उमड़ उमड़।

मोर पपीहा कोयल कूंकत

बरसे झमझम घुमड़ उमड़,

बादल आए घुमड़ घुमड़।।


भर भर कर लाते वे सागर,

भाग भाग भर लाते गागर।

शीतल मंद बयार पवन संग

काले श्यामल बादल उड़ उड़,

बादल आए घुमड़ घुमड़।।


प्यासी धरा तृप्त कर जाते,

भर भर सागर गागर लाते।

वसुधा यौवन से भर जाती

करते आते गड़-गड़ गड़-गड़,

बादल आए घुमड़ घुमड़।।


झूलति नारि मल्हारें गावत

प्रमुदित सखी सहेली आवत।

नाँचत पंछी बोलत दादुर

मेंढक चलते उछल उछल,

बादल आए घुमड़ घुमड़।।


प्यास बुझाने आते बादल,

मिलने सबसे आते बादल।

स्वच्छ धरा का अनुपम तोहफ़ा,

हम सबको दे जाते बादल।


द्रुम पादप यौवन मय होते,

जीव जंतु सब सुखमय होते।

करत मयूर विहार उलस भर

दमकै दामिनि पलपल तड़-तड़,

बादल आए घुमड़ घुमड़।।


सूखे पात हरित करि जाते,

वसुधा सकल मुदित करि जाते।

कुपित व्यग्र होते जब बादल

करते घोर वृष्टि जल धड़-धड़,

बादल आए घुमड़ घुमड़।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

२३.०८.२०२३ ०८.११ पूर्वाह्न (३३८)


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