कविता
आओ चलें चराग़ जलाएं
आओ चलें चराग़ जलाएं,
अंधड़ तूफानों का पहरा।।
चंहुदिश घोर अंधेरा ठहरा
नव शक्ती नव आस जगाएं,
आओ चलें चराग़ जलाएं।।
प्राप्त नहीं होता यूँ हीं सब,
अर्थ मान यश मेधा वैभव।।
संघर्षों के महा ज्वाल संग
सजग कर्मपथ कदम बढ़ाएं,
आओ चलें चराग़ जलाएं।।
अथक परिश्रम,
नित नित नव श्रम।।
संयम धैर्य शक्ति उर धर कर
चल पग धर ले नव आशाएं,
आओ चलें चराग़ जलाएं।।
दृढ़ इच्छा विश्वास साथ ले,
कुछ करने की आस साथ ले।।
स्वयं के अंदर शक्ति जगा चल
आएं विपदा या बाधाएं,
आओ चलें चराग़ जलाएं।।
अंधड़ हो या तम का डेरा,
हो हर ओर धुंध का पहरा।।
संयम साहस ज्ञान सत्यता
मंत्र सफलता के अपनाएं,
आओ चलें चराग़ जलाएं।।
बाधाएं आती सिखलाने,
मन के अंदर शक्ति जगाने।।
धीर वीर नर नहीं ठिठकते
हो बेशक विपरीत दिशाएं,
आओ चलें चराग़ जलाएं।।
जिनके अंदर साहस भर भर,
लिख जाते इतिहास धीर नर।।
उनकी धुन होती लय पक्की
दसों दिशाएं जय जय गाएं,
आओ चलें चराग़ जलाएं।।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
२४.०८.२०२३ ११.०५अपराह्न(३३९)