गज़ल
भूख कितनी सही…
ख़ुद को ख़ुद से,छुपाना नही चाहिए
"हद" से ज्यादा,दिखाना नहीं चाहिए
हैसियत क्या,तुम्हारी हमारी यहाँ
गर्द ज्यादा,उड़ाना नहीं चाहिए
आईना देख लेता है,सब खामियां
ख़ुद से नजरें,चुराना नहीं चाहिए
हम फँसे हैं,फँसे ही रहे ग़र रहे
और ज़्यादा,फंसाना नहीं चाहिए
भूख कितनी सही,और कितनी नहीं
इसको ज्यादा,बढ़ाना नहीं चाहिए
मिट गए खप गए,हो गए गुमशुदा
भूख से दिल,लगाना नहीं चाहिए
जिंदगी का क्या,आज है कल नहीं
दिल किसी का,दुखाना नहीं चाहिए
है हमें भी ख़बर,है तुम्हें भी ख़बर
खुद को ख़ुद से,गिराना नहीं चाहिए
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
२७.०८.२०२३ ०१.३०अपराह्न(३४०)