कविता-बहुत देर चुप्पी,नहीं ठीक होती

 

।। कविता ।।

बहुत देर चुप्पी,नहीं ठीक होती


बहुत देर चुप्पी,नही ठीक होती,

बहुत बतकही भी,नहीं ठीक होती।

गलत देखकर भी नहीं बोल पाना

यूँ रहने की आदत,नहीं ठीक होती,

बहुत देर चुप्पी नहीं ठीक होती।।


जो जिंदा हैं जिंदा,हकीकत में जिंदा,

वे बोलेंगे निश्चित,हैं जिंदा जो जिंदा।

बिके जो पड़े है दबे जो पड़े हैं

न हिम्मत न ताकत,सदाक़त ही होती,

बहुत देर चुप्पी नहीं ठीक होती।।


हम इंसा हैं इंसान,है क्या हक़ीक़त,

पता है हमें,बद-नीयत और नीयत।

हम कितने बचें हैं खुचे हैं पड़े हैं

बताने की अपनी,क्यों ताकत न होती,

बहुत देर चुप्पी नहीं ठीक होती।।


गिरे हम गिरे और गिरते क्यों जाते,

जिगर से नज़र से,उतरते यों जाते।

हम झूठे या सच्चे हमें ही पता है

यूँ अपनी नज़र,यूँ न कमज़ोर होती

बहुत देर चुप्पी नहीं ठीक होती।।


गरीबी में कोई,फकीरी में कोई,

कोई घुट रहा,जी हुजूरी में कोई।

मगर बोलना चाहिए था तुम्हें भी

अगर बोलते,तो ये हालत न होती,

बहुत देर चुप्पी नहीं ठीक होती।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

✍️स्वतंत्र लेखक✍️

२८.०८.२०२३ १०.२८पूर्वाह्न(३४१)








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