कविता-राजा ने दावत करवाई

 

✍️।। कविता ।।✍️

।। राजा ने दावत करवाई ।।


राजा ने दावत करवाई,

खूब बने रस भोग मिठाई।

बड़े बड़े आए मेहमान,

स्वर्ण पात्र में पाँत जिमाई।।

राजा ने दावत करवाई…


परजा रही नदारद सारी,

चुस्त दुरुस्त व्यवस्था भारी।

हुआ नाद राजा धनवान,

सचमुच है क्या यही सचाई।

राजा ने दावत करवाई…


डंका डंका कैसा डंका,

सहमा मन जागी उर शंका।

कर्ज भार से गर्दन टेढ़ी,

महंगाई चढ़ सिर चिल्लाई।

राजा ने दावत करवाई…


राजा "राजा" ठहरा राजा,

अपने "मन का राजा" राजा।

सत्य खड़ा सीने पर बोला,

नहीं नहीं सच यह सुन भाई।

राजा ने दावत करवाई…


खर्च किया करने से ज्यादा,

होना था कहीं इससे आधा।

अपने मुंह अपनी परशंसा,

हवा हवा क्या हवा बनाई।

राजा ने दावत करवाई…


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

१२.०९.२०२३ ०३.५८अपराह्न(३४७)





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