गज़ल-सोए को जगाया जाए

 
।। गज़ल ।।

सोए को जगाया जाए


मौजूदा हालात को,इस क़दर न छुपाया जाए।

असल को असल में,असल ही दिखाया जाए।।


दिखावट बनावट,सजावट का शोर बहुत है।

चुपके ही सही,हक़ीक़त के पास जाया जाए।।


निवाले को अधिकतर,आवाम कतार में है।

इसे देखकर भी कैसे,पीठ थपथपाया जाए।।


बस चंद रातें हीं,जगमग सितारों सी क्यूँ।

क्यों न उस आखिरी घर तक,चराग़ जलाया जाए।।


चलो हम छोड़ते हैं,तेरे बंदोबस्त पर यूँ हीं।

मग़र हम चाहते हैं,यूँ न नज़र चुराया जाए।।


फाइलों में हर ओर,हर तरफ वाह ही वाह।

हक़ीक़त पर ज़रा,नज़र को दौड़ाया जाए।।


शिक़ायत भी ज़रूरी है,ज़रूर किया करो।

इसी बहाने ही सही,सोए को जगाया जाए।।


करें कुछ उनसे इनसे,बातें,मुलाकातें ज़रूर। 

जो उदास हैं गुमसुम हैं,उन्हें हँसाया जाए।।


हवा नशे में हैं शायद,वक़्त साथ है शायद।

वक़्त इक बेवफ़ा आशिक़,हवा को बचाया जाए।।


इसी बहाने ही सही,सोए को जगाया जाए..


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

०८.०९.२०२३ ०१.२८अपराह्न (३४६)










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