कविता-रह गया फिर यहीं....

 

।। कविता ।।

रह गया फिर यहीं गाँव घर छोड़कर


कुछ उमीदें लिए पढ़ने आया शहर, 

धैर्य क्षमता लगन साथ लाया इधर।।

पाऊँगा बहुत कुछ जाऊँगा गाँव फिर,

रह गया फिर यहीं गाँव घर छोड़कर…


चमचमाते दिखे घर भवन सब यहाँ,

दिल बहुत कम दिखे धड़कते से यहाँ।।

थी बहुत भूख पाने की पलपल पहर,

रह गया फिर यहीं गाँव घर छोड़कर…


चाह थी काम की काम भी मिल गया,

चाह थी नाम की नाम भी मिल गया।।

किंतु फिर भी नहीं चैन था सांस भर,

रह गया फिर यहीं गाँव घर छोड़कर…


याद आए बहुत खेत खलिहान सब,

ताल पोखर नहर खेल मैदान सब।।

वह कुआं वह रहट वह नदी वह सफ़र,

रह गया फिर यहीं गाँव घर छोड़कर…


भागता शहर था जागता शहर था,

आदमी बहुत कम था ये अंधेर था।।

किससे बोलें मगर गूंगा बहरा शहर,

रह गया फिर यहीं गाँव घर छोड़कर…


बहुत एकाकीपन बहुत टूटा सा मन,

घुट रहा था कहीं चुप रहे चुप नयन।। 

थी बहुत भीड़ लेकिन ह्रदय बेअसर,

रह गया फिर यहीं गाँव घर छोड़कर…


याद आयी कहानी वह चौपाल की,

याद आयी निशानी नए साल की।।

खुल गए जख्म सब जो दबाए इधर,

रह गया फिर यहीं गाँव घर छोड़कर…


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

१८.०९.२०२३ ०८.११पूर्वाह्न(३४९)


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