गज़ल-तब होश आया

 

।। गज़ल ।।

।। तब होश आया ।।

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उमर जब ढ़ल चली,तब होश आया

जब अकेले हो चले,तब होश आया


बिगाड़ बैठे हम,ख़ुद के लहू से भी

बैचेनियां जब बढ़ी,तब होश आया


होश रखना चाहिए था,वक़्त के रहते

वक़्त जब जाने लगा,तब होश आया


गलत गलत गलत,वे ही गलत दिखे

गिरेबां जब सना देखा,तब होश आया


पत्थरों से बदतर दिल,और हम चुप रहे 

चुप्पियां बोल बैठीं सच,तब होश आया


पुरखों की जमीन,दौलत उजाड़ते रहे

हाथ जब खाली दिखे,तब होश आया


यूँ हीं दो गज जमीं,नसीब नहीं होती

उजाड़ बैठे आशियां,तब होश आया


वक़्त जब साथ था,तब हम नशे में थे

वक़्त निकला बेवफ़ा,तब होश आया


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

१९.०९.२०२३ ०१.५९अपराह्न (३५०)





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