कविता-राजा का जनता दरबार

 

।। कविता ।।

राजा का जनता दरबार 


राजा का जनता दरबार 

बैठे बड़े बड़े सरदार

भारी भरकम अमला दस्ता

कारकुनों की हालत खस्ता


विषय था बढ़ती लूट खसोट

इस पर बस करनी थी चोट

राजा ने प्रचार कराया

जनता का दरबार लगाया


शीला आयी लीला आया

राजा को निज दर्द सुनाया

होता गलत सुनो महाराज

ठीक नहीं होता कुछ काज


नहीं मुलाज़िम करते काम

साथ मिले हैं कुछ हुक्काम

मुंशी मिल करता मनमानी

सुन राजा को हुई हैरानी


राजा बोला जाओ तुम घर

डरना मत तुम अब रत्तीभर

भेष बदल कर पहुँचा राजा

थाने चौकी यहाँ वहाँ राजा


राजा फरियादी बन पहुँचा

आवेदन एक लेकर पहुँचा

मुंशी संमुख शीश झुकाया

अपना दुखड़ा दर्द सुनाया


नकद नरायन कुछ लाए हो

या फिर यूँ ही उठ आए हो

फरियादी के वेष में राजा

देख रहा सब हरकत राजा


नीचे से ऊपर तक देखा

ऊपर से नीचे तक देखा

व्याप्त था भारी भृष्टाचार

राजा चिंतित करै विचार


है सच में पहले सा हाल

रिश्वत लूट का मायाजाल

अपनी कमियां कैसे खोलूँ

कैसे सच में सच सच बोलूँ


किसको छोड़ूं किसको पकड़ूं

किसको नापूं किसको जकड़ूं

मंत्री जी का हिस्सा देखा

उसमें अपना हिस्सा देखा


चलो नया इक दाव चलाएं

जनता को मिलके भरमाएं

राजा ने फिर दाव चलाया

जनता को फिर से भरमाया


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

२१.०९.२०२३ १०.५९ अपराह्न (३५१)





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