दोहे-वृद्धाश्रम में देखिए

 

।। दोहे ।।

वृद्धाश्रम में देखिए

—-

जीते जी ना दे सके,मात पिता को मान।

उन्हें भी करते देखिए,श्राद्धकर्म सनमान।।


पंडों को भोजन दिए,दिए काग कौ भाग।

जीते जी पितु मातु को,दिए न रोटी साग।।

—-

जीवित थे तब ना दिए,हलवा पूड़ी खीर।

श्राद्ध कर्म भारी करन,द्वारहिं जोरी भीर।।


पंडन को वे दे रहे,विविध भाँति उपहार।

जीते जी माँ बाप को,दिए न एकहूँ बार।।

—-

मरे पिता अरु मातु को,पूजहिं जैसें दैव।

जीवित पर तिरस्कार,जो देते रहे सदैव।।


भूखे प्यासे मातपितु,भय से कंपित गात।

ऐसी संतति भार सम,पक्की सच्ची बात।।

—-

वृद्धाश्रम में देखिए,हैं किसके पितु मात।

जीते जी नित घुट रहे,कौन दिया सौगात।।


नयन नीर सूखा पड़ा,ह्रदय पीर भरपूर।

आवत जावत देखते,घर भा ज्यादा दूर।।

—-

ऐसी सन्तति भी करे,पिंड श्राद्ध अरु दान।

तब हम सबको चाहिए,घोर करें अपमान।।


कौर कौर को तरसते,जीवित अम्मा बाप।

फिर काहे की भागवत,कैसा माला जाप।।

—-

जियत पिता को,वस्त्र ना दीने जानें चार।

पंडों को पकवान संग,वस्त्र करै उपहार।।


ऐसे लंपट सुतन पर,वज्र गिरै आ झार।

जो अपने माँ बाप को,समझें भारी भार।।

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अपने अपने वक्त का,रखना थोड़ा ध्यान।

आता जाता समय है,है अद्भुत यह ग्यान।।


जीते जी जो कर रहे,मात पिता संग नेह।

उनको निश्चित मिलेगा,दैव किरपा अस्नेह।।

—-

सादर वंदन मातपितु,बहुत किये उपकार।

ब्रह्मा श्रीहरि शंभु तुम,वंदन कोटिशःबार।।

—-

सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

२९.०९.२०२३ ०८.५९ पूर्वाह्न(३५२)

(श्राद्ध पक्ष पर विशेष)

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