।। गज़ल ।।
बस ख़ुद की प्यास
कुछ लोग बड़े ही खुश-नसीब होते हैं
जिनके अपने सगे उनके क़रीब होते हैं
मिल जाएंगे बहुत से छिटके हुए हुए से
सब कुछ के बाद भी बेहद ग़रीब होते हैं
जिन्हें बस ख़ुद की प्यास प्यास लगी
ऐसों को क्या कहें ये बद-नसीब होते हैं
यूँ ही हर वक़्त ख़ुद ख़ुद को न कोसिए
जो ख़ुद में खुश रहें खुश-नसीब होते हैं
लूट लेते हैं सलीके से यूँ हीं वे सब कुछ
कितने छुपे रुस्तम कितने अजीब होते हैं
चलों चलें हौसले के साथ अपना सफ़र
उस रब के हाथ में सबके नसीब होते हैं
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
०१.१०.२०२३ ०८.०८पूर्वाह्न(३५३)