🌷🌷कविता🌷🌷
शिक्षक भगवन!
शिक्षा का मंदिर,मंदिर में शिक्षक भगवन,
कितना था परिपूर्ण,पूर्व शिक्षा का उपवन।
लेकिन अब बाजार,मूल्य दर,छद्म दिलासा,
सहमी सहमी डरी दिखी विध्या जिज्ञासा।।
शिक्षक शायद भूल रहे स्वयं की परिभाषा,
अरुणोदय सा मान ज्ञान शिष्यों की आशा।
शिक्षा में बाजार,बढ़ा व्यापार,बड़ा सा,
चकाचौंध को देखि डरी सहमी अभिलाषा।।
बहुत बहुत हैं शेष जिन्हें ना भान स्वयं का,
ना शिक्षा का मान ज्ञान ना ध्यान स्वयं का।
हैं कुछ शेष विशेष आज जो धर्म निभाते,
सुर नर किन्नर नाग मान में शीश झुकाते।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
०५.०९.२०२३ ०९.०१ पूर्वाह्न (३४५)
(शिक्षक दिवस पर विशेष)