अशआर-रोज चलता हूँ

 

अशआर

रोज चलता हूँ

✍️१✍️

अदब ज़रूरी है जरूर देना भी चाहिए

कब किसे कितना ये आना भी चाहिए


पचे ही पचे ज़रूरी नहीं सबको अदब 

जुदा जुदा सबके लिए पैमाना चाहिए

✍️२✍️

बहादुर भी बहुत हैं बुजदिल भी बहुत

ज़ालिम भी बहुत नरम दिल भी बहुत


वफ़ा भी बहुत है जफ़ा भी तो कम नहीं

दिलदार भी बहुत हैं संगदिल भी बहुत

✍️३✍️

वक़्त ज़रा कम है काम ज़रा ज़्यादा है

कुछ नया कर गुजर जाने का इरादा है


रोज चलता हूँ गिरता हूँ मगर चलता हूँ

कदम कदम पर मुस्करा कर चलता हूँ

✍️४✍️

उन्हें मंजिल नहीं मिलती जो डरते हैं

रोज़ रोज़ थोड़े थोड़े ज़रा ज़रा मरते हैं


उन्हें रब भी मंजिल नहीं दिला सकता

जो जोश होश सदाक़त बग़ैर चलते हैं

✍️५✍️

तुम्हें लगता है कि वे दमदार बहुत हैं

घिरे हुए चलते हैं असर दार बहुत हैं


मगर सच नहीं है ये बस धुआँ धुआँ है

बड़े बड़े यहाँ और भी सरदार बहुत हैं

✍️६✍️

इस दौर आदमी क्यूँ कम होते जा रहे हैं

जागना चाहिए मगर हम सोते जा रहे हैं


नज़र से न गुनाह दिखता है न गुनहगार

ख़ुद से ख़ुद ही क्यूँ रोज़ खोते जा रहे हैं

✍️७✍️

हक़ीकत बहुत देर से जाने तो क्या जाने

गलतियां देर से अगर माने तो क्या माने


तेरी हवा तुझे कब तक संभाल पाएगी

हवा को बस हवाहवा जाने तो क्या जाने

✍️🌷🌷✍️

सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

०३.१०.२०२३ ०८.२९ पूर्वाह्न(३५४)






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