कविता-हम भी मालामाल थे

 

।। कविता ।।

हम भी मालामाल थे

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आज फिर गुजरा वह बचपन याद आया,

रोते रोते मुस्कराना गुनगुनाना याद आया।

याद आए वे सभी दिन और वे खुशियों भरे पल,

रूठ करके मुँह फुलाना याद आया याद आया।


बारिशों में नाव कागज की चलाई याद आयी,

फक्क उजली रात टेसू की विदाई याद आयी।

नदी में कूद कर विपरीत लहरों संग अटकना,

बचपना बचपन की कहानी याद आयी याद आयी।


तलैया के किनारे का नजारा याद आया,

कबड्डी में पटकने का इशारा याद आया।

सरलता से भरे थे सब तरह खुशहाल थे,

हम भी बचपन में सुनो खूब मालामाल थे।


नित नई आशाएं ले हम रोज यूँ चलते रहे,

हो रहे थे हम बड़े इस ख्वाब में पलते रहे।

बड़े होकर भी बड़े लघु और लघुतर ही रहे,

कुआँ प्यासा ही रहा पर प्यास की कैसे कहे।


चक्र यूँ चलता रहा हम साथ में चलते रहे,

रोज चलते बैठ जाते हाथ बस मलते रहे।

गुजरते सब जा रहे थे दिन महीने साल थे,

हम भी बचपन में सुनो खूब मालामाल थे।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

१५.१०.२०२३ ०८.२८पूर्वाह्न(३५६)

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