।। कविता ।।
✍️ आँसू ✍️
स्वयं रोए तब ही हम समझे
आँसू भी होते हैं,
पृथक पृथक बहु रूप रंग के..
दर्द के आँसू प्रीति के आँसू
करुणा के होते हैं,
स्वयं रोए तब ही हम समझे
आँसू भी होते हैं।
जीत के आँसू हार के आँसू
प्रीति के आँसू मार के आँसू
आँसू के भी अंतर् जग में भी
आँसू होते हैं,
स्वयं रोए तब ही हम समझे
आँसू भी होते हैं।
धीरे धीरे शनैःशनैः प्रतिक्षण
कितना खोते हैं,
बचपन यौवन स्वजन सहोदर..
स्वप्न लिए नित नए नए हम
अध जागे सोते हैं,
स्वयं रोए तब ही हम समझे
आँसू भी होते हैं।
कंधों पर अपना भार अधिक हम
दिन प्रतिदिन ढ़ोते हैं,
लेकिन मन का भार थका जाता है..
कह नहीं सकते हृदय पीर हम नित
घुट घुट रोते हैं,
स्वयं रोए तब ही हम समझे
आँसू भी होते हैं।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
०८.१०.२०२३ ११.५५ पूर्वाह्न(३५५)