दोहे-जागें उच्च विचार

।। दोहे ।।

जागें उच्च विचार


चादर का रखते सदा,बुद्धिमान नर ध्यान।

फँसी विकट जंजाल है,हँसी है धूर समान।


चादर जितनी हो बढ़ी,पग उतने पैसार।

जादै तान पसारिहौ,चादर दहिहौ फार।।


कम खरचै जोड़ै अधिक,वही चतुर इंसान।

कठिन वक्त पर अर्थ ही,मित्र इष्ट भगवान।।


अर्थ बिना संभव नहीं,पूजा पुण्य न यज्ञ।

जीवन दर्शन है यही,समझ सोच नरविज्ञ।।


विद्वान नर कह गए,जादै बोल न बोल।

मुट्ठी बंद करोड़ की,खाली का ना मोल।।


नैन उघारे ही दिखै,प्रीति रीति व्यौहार। 

पल पल में यूँ बदलते,रिश्ते नाते झार।।


सदा सर्वदा लीजिए,हल्का अल्प अहार।

स्वस्थ रहै काया सदा,जागें उच्च विचार।।


भूख ना ज्यादा राखिए,ज्यादा रोग समान।

काया में व्याधी बढ़हिं,घटहि निरंतर ज्ञान।। 


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक 

२२.१०.२३ १०.२५अपराह्न(३५८)


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