।। दोहे ।।
रामायण के रचयिता,वाल्मीकि मुनि नाथ।
सादर वंदन महा ऋषी,जोड़ऊं दोनों हाथ।।
देव ऋषी नारद मुनी,मार्ग दिखाए आय।
नारद जी के रूप में,देवन्ह कीन्ह सहाय।।
पाप कर्म का भान भा,ग्लानि भई अधिकाय।
त्याग दिए कुल नारि सब,मरा मरा चिल्लाय।।
हिंसक से साधू बने,हुए देव सम आप।
मरा मरा जपते रहे,राम राम भा जाप।।
मरा मरा से राम भा,मर्म न आपहूँ जान।
श्रीहरि के आशीष से,मिला उच्च स्थान।।
रत्नाकर से बन गए,आप दिव्यऋषि नाथ।
ज्ञानदायिनी धर दिया,आशीष रूपी हाथ।।
देवन्ह की कृपा भई,शारद कीन्ह सहाय।।
दिव्यज्ञान से भर गए,रचा ग्रंथ मुनि राय।।
रामायण पावन रचीय,रघुवर के गुणगान।
लवकुश कूँ शिक्षा दई,शास्त्र शस्त्र विज्ञान।।
महाश्वेता की कृपा से,मूरख पंडित होय।
सूछम अद्भुत रहस्य यह,जान सकै कोय कोय।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
२८.१०.२०२३ ०९.१९ पूर्वाह्न (३६१)
🙏🏼वाल्मीकि जयंती पर विशेष🙏🏼