कविता-।।तब फिर युद्ध हुआ करते हैं।।

 

।। कविता।।

।। तब फिर युद्ध हुआ करते हैं ।।

मानवता जब मर जाती है,

तब फिर युद्ध हुआ करते हैं।।

मासूमों के स्वप्न नोंच कर,

उसमें अगिन भरा करते हैं।।

मानवता जब मर जाती है…..तब फिर..


नियम नीति स्नेह समर में खोता,

दया धर्म आचरण स्वाह सब होता।।

नहीं जीत यहाँ पूर्ण किसी को मिलती,

कदम कदम पर पद कराह करते हैं।।

मानवता जब मर जाती है…..तब फिर..


लाशों की सड़ांध उजड़े सब सपने,

मासूमों के नैन खोजते खोए अपने।।

मेंहदी अरु सिन्दूर यहाँ रोते पुकारते,

बिना लड़े ही युद्ध ये सब लड़ते हैं।।

मानवता जब मर जाती है…..तब फिर..


अग्नि चिता की राख चिता की कहती,

समर शांति समता सनेह कब लाया।।

खाया इसने सदा दया करुणा को खाया,

कटे पड़े नररुंड मुंड भुजदंड यही कहते हैं।।

मानवता जब मर जाती है…..तब फिर..


युद्ध थोपने वाला या फिर लड़ने वाला,

शस्त्रों का बाजार लगाकर बढ़ने वाला।। 

दोनों ही हिंसक हिंसा के पोषक से हैं,

लिखे हुए संदेश यही कहते रहते हैं।।

मानवता जब मर जाती है…..तब फिर..


विध्वंस यहाँ इकतरफा होता नहीं कभी,

होता है जब युद्ध नष्ट कर जाता है सब।।

दया धर्म ईमान प्रेम करुणा अरु वैभव,

उजड़े घर टूटे मन क्या कितना सहते हैं।।

मानवता जब मर जाती है…..तब फिर..


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

३०.१०.२०२३ ११.३३पूर्वाह्न (३६२)


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