कुंडलियां//गुदगुदी ०१//

 


कुंडलियां

// गुदगुदी ०१//


✍️//१//✍️

नित नित कैसे हो रहे,अंग दरश भरपूर।

सुंदरियां मटकत घणी,होकर मद में चूर।।

होकर मद में चूर,शरम की बात न कोई।

रील बनाके फील खुशी,अति मन में होई।।

जो जितनी प्रसिद्ध,घनी वह पैसे वाली।

चमकै अंग उमंग,चलै होकर मत वाली।।


✍️//२//✍️

मैया बाप कूँ लाज फाज,ना बिल्कुल आवै।

घर बैठें मेई राजदुलारी,डॉलर खूब कमावै।।

डॉलर खूब कमावै,कैमरा ला दोऊ आए।

मम्मी है गयी चुप्पु,बाप फिर हवा बनाए।।

फेमस होवै खूब,लाडली म्हारी प्यारी।

हरसत मैया बाप,लुगाईं दै रहीं गारी।।


✍️//३//✍️

कूकर का बेटा मगन,गोदी में हरषाय।

पिल्ला गोरी गोद में,देखि पती पछताय।।

देखि पती पछताय,हवा ये कैसी आयी।

पिल्ला है रहौ मस्त,चाटतौ गाल सिहायी।।

लग्जोरीयस लाइफ,किसी को क्या पड़ी है।

लेके पप्पी गोद लुगाई,बाकीऊ बितै खड़ी है।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

२३.११.२०२३ ११.०८अपराह्न (३६९)


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