कुंडलियां // गुदगुदी ०३ //

 

कुंडलियां

//गुदगुदी ०३//


✍️// ०१ //✍️

नई पड़ोसिन देखि कर,हरषे काली नाथ।

भोर सांझ जाने लगे,टहलन बिनके साथ।।

टहलन बिनके साथ,गुदगुदी करते जाते।

गप्पें मारत जात,,संग हिलमिल मुस्काते।।

भावीजी कूँ भनक परी,जब कानों जाई।

कुट गए कालीनाथ,पड़ोसिन दई छुड़ाई।।


✍️// ०२ //✍️

वरमाला का दृश्य था,मस्त थे दूल्हे लाल।

हाथ में लेकें खड़ी थीं,दुल्हन जी वरमाल।।

दुल्हन जी वरमाल,हर्ष हिय में न समाता।

दूल्हे जी के पास,तभी इक मिलने आता।

पऊआ लेकर हाथ,बराती पिये खड़ा था।

दूलहू पी गयौ गट्ट,नशा में धुत्त पड़ा था।।


✍️// ०३ //✍️

हज्जू गज्जू बैंक में,पहुँचे अति हरषाय।

लाख पन्दरह आएगें,खाता लूँ खुलवाय।।

खाता लूँ खुलवाय,फेर जम धुआँ उडांगें।

पीके रहिगें टल्ल,जबहीं पईसा आ जांगे।।

हज्जू गज्जू से कहै,सुन भैया इक बात।

अब नइं आंगे हाथ में,जावन भई बरात।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

२९.११.२०२३ ०८.५१ पूर्वाह्न(३७१)



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