कविता-बुनियाद की ईंटें

 

✍️कविता✍️

बुनियाद की ईटें

ग्यारह ईटें ग्यारह ईटें,

बुनियाद बनीं ग्यारह ईटें।।

पूजा मंत्रों का उच्चारण, 

थी त्यागरूप ग्यारह ईटें।।


की गईं शुद्ध गंगा जल से,

पुष्पों से उनको लाद दिया।।

मिष्ठान समर्पित किये गए,

चंदन जल अक्षत आद दिया।।


सब भार उठाया फिर उनने,

अपना सौंदर्य लुटाया सब।।

कर दिया त्याग स्व इच्छा से,

कर गईं विशेष नींव करतब।। 


जब भवन बना ईटें बोलीं,

अट्टालिका दंभ दिखलाती है।।

वलिदान मिरा विस्मरण हुआ,

शायद इसलिए चिढ़ाती है।।


लेकिन इसको ये ज्ञान नहीं,

है मम कंधों पर खुद सवार।।

सर्वस्व त्याग कर दिया मैंने,

दे दिया रूप सर्वस्व हार।।


नादान नासमझ लगती है,

इसको शायद ये भान नहीं।।

पर शायद ये भी हो सकता,

हो सच में ही पहचान नहीं।।


बोलीं फिर वे ग्यारह ईटें,

आशीष तुम्हें मैं देती हूँ।।

अट्टालिका कँगूरे प्राचीरें,

सब भार हर्षयुत लेती हूँ।।


रखना चहिए ये भान तुम्हें,

कुछ खास विशेष बनी ईटें।।

तब कहीं भवन ये हुआ खड़ा,

स्वयं देव स्वरूप बनी ईटें।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

०१.१२.२०२३ १२.४१अपराह्न(३७२)


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