।। दोहे ।।
शुद्ध हवा ना शुद्ध जल !
प्रदूषण नियंत्रण नहीं,कीन्हे पूरे साल।
अब देखो चिल्ला रहे,कैसे गुरुघंटाल।।
प्रदूषण क्या वर्ष में,बढ़ता बस दो मास।
शोर-शराबा है मचा,दमघोंटू भई साँस।।
पूर्ण प्रदूषण मुक्त क्या,रहते पूरे साल।
भैया दद्दा देख लो,सरकारों के हाल।।
सरकारें सब एक सी,नेता भी सब एक।
इच्छाशक्ती की कमी,चतुर एक से एक।।
ये सब मटके एक से,रहत खूब मगरूर।
इनको क्या हम आपसे,रहें नशे में चूर।।
शुद्ध हवा ना शुद्ध जल,कौन है जिम्मेदार।
बृक्ष निरंतर कट रहे,दूषित है गयी ब्यार।।
कुदरत के संग मनुज ने,किए बहुत उत्पात।
हवा साफ सब खा गए,तब बिगड़े हालात।।
प्रदूषण अब मिल रहा,बिन माँगे हर ओर।
जल वायू दूषित भई,श्वांस होत कमजोर।।
चेत जाइये वक्त पर,फिर चेतें क्या काम।
रक्तबीज से कम क्या,परदूषण का नाम।।
बृक्ष लगाओ नित नए,खोदो खोजो ताल।
सरकारें जागत रहहिं,दिवस महीना साल।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
०४.११.२०२३ १०.०८अपराह्न (३६४)