।। गज़ल ।।
❤️मुस्कराता मिला कोई❤️
ग़रीबी के बावजूद गुनगुनाता मिला कोई
वक़्त के साथ यूँ दिल लगाता मिला कोई
मिले बहुत ऐसे भी दर्द ए दिल जमाने में
अमीरी के बाद ठोकरें खाता मिला कोई
कुछ और भी दिल ख़ास और ख़ास मिले
ख़ुद से आईने से नजरें चुराता मिला कोई
कुछ इश्क दौलत से बेसुमार ज़ोरदार किए
वक़्त वक़्त पै आईना दिखाता मिला कोई
दिल ज़रा दिल ही बना रहे तो बहुत ठीक
दिल बड़ा कमज़ोर है चिढ़ाता मिला कोई
सपने अपने और अपनों के लिए सपने
अपनों के वास्ते लड़खड़ाता मिला कोई
हमारे अपनों को सब खुशियां मिलें यूँ हीं
दिल में ये ख़्वाब भी सजाता मिला कोई
कंधे झुके से कदम थके थके से होने लगे
आखिरी सफ़र पर फिर जाता मिला कोई
क़माल हुआ ए दिल उस रब की ओर से
सफ़र के बीच फिर से आता मिला कोई
कुछ रूठते रहे कुछ छूटते रहे यूँहीं राह में
रूठों को छूटों को बस मनाता मिला कोई
वे नाराज़ हो बेवज़ह दिलों से दूर जा बैठे
नाराज़ दिलों से दिल लगाता मिला कोई
दौलतें भी बेकार गईं शौहरतें भी क्या करें
वक़्त के साथ आईना दिखाता मिला कोई
किसी किसी की हालतें इतनी ख़राब थीं
ख़ुद ख़ुद से ख़ुद को छुपाता मिला कोई
यूँ तो नासाज़ बहुत है मौजूदा वक़्त दिल
इन सब के बावजूद मुस्कराता मिला कोई
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
०८.११.२०२३ १०.५५पूर्वाह्न(३६५)