गज़ल-बात समझ आ जाए

 

गज़ल

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बात समझ आ जाए


नफ़ा नुकसान भितरघात समझ आ जाए

समय पर समय से,ग़र बात समझ आ जाए


चमक सकते हो यक़ीनन सितारों की तरह

हवा का फ़र्क और दिन रात समझ आ जाए


बोलने से पहले अल्फ़ाज़ तुम्हारे हैं सच है

बाद की बात,मुलाकात समझ आ जाए


शिक़ायत भी नहीं करना अदावत भी नहीं

हवा के साथ ज़रा बिसात समझ आ जाए


वक़्त बड़ा बेरहम और रहमदिल होता है

अक्लमंद वे जिन्हें करामात समझ आ जाए


दिल की सदा और आंखों की उदासियाँ

आँसू इश्क़ वफ़ा जज़्बात समझ आ जाए


अगर उलझे रहे तो फिर सुलझ ना पाओगे

सुलझना कैसे है,शुरूआत समझ आ जाए


किसी के सहारे आसमान छूने की तरक़ीब

तरक़ीब नहीं ज़रा औक़ात समझ आ जाए


सुनो समझदार वही है होशियार भी वही 

समय रहते समय का,हाथ समझ आ जाए


साथ किसका कब कितनी देर तक पाओगे

सभी मुसाफ़िर हैं सफ़र के,साथ समझ आ जाए


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

१७.१२.२०२३ ०७.५१पूर्वाह्न(३७७)

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