✍🏻घोंसला वह कहाँ से लाएं✍🏻
घोंसला वह कहाँ से लाएं,
वह चिरईया कहाँ से लाएं।
खो गयी जो खप गयी जो,
कहाँ से लाएं कहाँ से लाएं
चहचहाना कहाँ से लाएं…
अब नहीं पड़ती दिखाई,
वह कहीं मुंडेर पर अब।
बदलती यूँ जा रहीं नित,
हवा पानी रुत प्रथाएं…
चहचहाना कहाँ से लाएं…
बढ़ रहे हम चढ़ रहे हम,
लूट कर वन बाग पोखर।
खोखलापन खोखलामन,
खोखलेपन से बचाएं…
चहचहाना कहाँ से लाएं…
पत्थरों की बागवानी,
हो रही है शहर भर में।
पेड़ कटते जा रहे हैं,
किसे कोसें दें सजाएं…
चहचहाना कहाँ से लाएं…
है जमीं की कोख घायल,
रो रही चुपचाप छुपकर।
उन्नती या पथ भृमित हम,
क्या बताएं क्या छुपाएं…
चहचहाना कहाँ से लाएं…
भूख का क्या भूख है वह,
सब पचाती भूख जाती।
क्या दिया कितना लिया है,
समझें सोचें फिर बताएं…
चहचहाना कहाँ से लाएं…
हवा दूषित हम प्रदूषित,
प्रकृति का दोहन निरंतर।
किस तरह अंधे मनुज को,
मार्ग सद मारग दिखाएं…
चहचहाना कहाँ से लाएं…
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
२२.१२.२०२३ ०३.०१अपराह्न(३७८)