// गज़ल //
आईने से ज़रा मुलाक़ात करो
दिखावे से ज़रा बाहर,निकल पाओ तो बात समझ आए
नक़ाबों के बिना नज़र आओ तो बात समझ आए
आँखें बताती हैं कि वे कितनी ख़फ़ा हैं कितनी उदास हैं
आईने से ज़रा मुलाक़ात करो तो बात समझ आए
हवा भी रंगीन बदली सी हो चली है शायद दबाव में
मज़हबी चश्मा हटाओ नज़र आओ तो बात समझ आए
गुम हो रहे हो खो रहे हो रोज़ रोज़ ख़बर पक्की है
अपने क़रीब उनके क़रीब आओ तो बात समझ आए
अपने गिरेबाँ पै नज़र जाए तो बात,नहीं तो क्या बात
गलतियां ख़ुद कीं ख़ुद समझ आएं तो बात समझ आए
कभी खुलकर चलो कभी ख़ुद से बात करो
बनावट से दिखावट से ज़रा दूर चलो तो बात समझ आए
अज़ीज तुम्हें रंगीन महफिलों से दिखावे से फुर्सत कब है
ज़रा फुर्सत में नज़र आओ तो बात समझ आए
दोस्तों से करीबियों से दिल की बात करें ना करें
अंदर खाने की मुलाकात समझ आए तो बात समझ आए
मुसाफ़िर हैं चलो चलें इश्क़ करें सुनें समझें बात करें
वक़्त रहते बात और साथ समझ आए तो बात समझ आए
हुजूम का हिस्सा बने तो हिस्से में क्या मिले,क्या नहीं
हुजूम से पार निकल पाओ तो बात समझ आए
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
२८.१२.२०२३ १२.५८अपराह्न(३७९)